प्रारम्भ से समापन की यात्रा के लगभग मध्य में आकर।
बेतहाशा दौड़ कर दो पल सुस्ता कर
जब आस पास देखा तो पाया,
कुछ थोड़ा हासिल किया
काफी कुछ गंवाया।
जब प्रारंभ था तो मेरी मंजिल तो यह नहीं थी।
मध्य मे जाना ये तो प्रतियोगिता ही मेरी नही थी।
आज जो हासिल है या जो मुकाम आगे हैं।
क्या वाकई शुरुआत से हम उसके लिए भागे हैं।
जिनके लिए जाना था वो चेहरे तो हैं ही नहीं।
जो हैं वो तो कभी थे ही नहीं।
अब बस मै हूँ और आगे इक रास्ता है।
रुक नहीं सकता राह मे कि बरसों पहले का दिया वास्ता है।
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